कन्हैया मेरे हाथों से छूट गयो रे,
Kanhiya mere hatho se chut gayo re
कन्हैया मेरे हाथों से छूट गयो रे, छूट गयो रे,
वह तो चकमा देकर निकल गयो रे|
फिर मैंने सोचा वृंदावन जाऊंँगी,
वृंदावन जाकर उसे माखन खिलाऊंँगी,
वह तो वृंदावन से मथुरा निकल गयो रे, निकल गयो रे,
वह तो चकमा देकर निकल गयो रे,
कन्हैया मेरे हाथों से छूट गयो रे|
फिर मैंने सोचा मथुरा जाऊंँगी,
मथुरा जाकर उसे दहिया खिलाऊंँगी,
वह तो मथुरा से द्वारका चला गयो रे, चला गयो रे,
वह तो चकमा देकर निकल गयो रे,
कन्हैया मेरे हाथों से छूट गयो रे|
फिर मैंने सोचा द्वारका जाऊंँगी,
द्वारका जाकर उसके चरण दबाऊँगी,
वह तो द्वारका से बैकुंठ चलो गयो रे, चलो गयो रे,
वह तो चकमा देकर निकल गयो रे,
कन्हैया मेरे हाथों से छूट गयो रे|
फिर मैंने सोचा बैकुंठ जाऊंँगी,
बैकुंठ जाकर वहीं रह जाऊंँगी,
वह तो बैकुंठ से सत्संग चला गयो रे, चला गयो रे,
वह तो चकमा देकर निकल गयो रे,
कन्हैया मेरे हाथों से छूट गयो रे|
फिर मैंने सोचा सत्संग में जाऊंँगी,
सत्संग में जाकर उसे भजन सुनाऊंँगी,
वह तो भक्तों के दिल में बस गयो रे, बस गयो रे,
वह तो चकमा देकर निकल गयो रे,
कन्हैया मेरे हाथों से छूट गयो रे|
कन्हैया मेरे हाथों से छूट गयो रे, छूट गयो रे,
वह तो चकमा देकर निकल गयो रे|
श्रेणी:
कृष्ण भजन
स्वर:
Usha Bansal ji