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दरबार हजारों देखे हैं

रबार हजारों देखें हैं पर ऐसा कोई दरबार नहीं,
जिस गुलशन में तेरा नूर ना हो ऐसा तो कोई गुलजार नहीं,
दरबार हजारों देखे हैं पर ऐसा कोई दरबार नहीं!!

अश्कों के थिरकते रहते हैं दिन रात तुम्हारे चरणों में,
है कौन बसर इस दुनिया का तेरे दर का खिदमत दार नहीं,
दरबार हजारों देखे हैं पर ऐसा कोई दरबार नहीं!!

वह नेत्र नहीं मोर पंख है बस जिनसे प्रभु का दीदार न हो,
वह दिल नहीं पत्थर होता है जिस दिल में प्रभु का प्यार नहीं,
दरबार हजारों देखे हैं पर ऐसा कोई दरबार नहीं!!

दुनिया से भला हम क्या मांगे दुनिया तो खुद ही भिखारन है,
मांगो उस मुरली वाले से जहां होता कभी इंकार नहीं,
दरबार हजारों देखे हैं पर ऐसा कोई दरबार नहीं!!

हसरत है तुमसे मनमोहन जिस वक्त मेरा यह दम निकले,
तेरा एक नजारा काफी है बस और मुझे दरकार नहीं,
दरबार हजारों देखे हैं पर ऐसा कोई दरबार नहीं!!

श्रेणी:

कृष्ण भजन

स्वर:

बृजवासी दिवाकर शर्मा जी

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