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ना जी भर के देखा ना कुछ बात की बडी आरजू थी मुलाकात की,

Na ji bhar ke dekha na kuch baat ki

ना जी भर के देखा ना कुछ बात की बडी आरजू
थी मुलाकात की,करो दृष्टि अब तो प्रभु करूणा
की बडीआरजू थी मुलाकात की……..

गये जब से मथुरा वो मोहन मुरारी सभी गोपियाँ
बृज में व्याकुल थी भारी,कहाँ दिन बिताया कहाँ
रात की ,बडी आरजू थी मुलाकात की……..

चले आओ अब को प्यारे कन्हैया सुनी है कुजन
और व्याकुल है गईयाँ,सुना दो इन्हें अब तो धुन
मुरली की ,बडी आरजू थी मुलाकात की……..

तेरा मुस्कराना भला कैसे भूले वो कदम्बन की
छईयाँ वो सावन के झूले,ना कोयल की कू-कू
ना पपीहे की पी-पी ,बडी आरजू थी………

तमन्ना यही थी के आयेगें मोहन मैं वारोगी उन पे
ये तन मन ये जीवन ,हाय मेरा कैसा ये बिगडा नसीब,
बडी आरजू थी मुलाकात की………

हम बैठे है कब से तेरे मन को पाने,भला ऐसे में खुद
को कैसे सम्भाले,ना उनकी सुनी ना अपनी कही बडी
आरजू थी मुलाकात की………

श्रेणी:

कृष्ण भजन

स्वर:

Sangeeta kapur ji

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